Mahashivratri ki Vrat Katha: करें महादेव को प्रसन्न महाशिवरात्रि व्रत की कथा पढ़ने मात्र से
देवों के देव, योगियों के आदियोगी, वैष्णवों के महावैष्णव, आशुतोष, थोड़ी पूजा से प्रसन्न होने वाले, देवी पार्वती के स्वामी, उमापति, संसार का भार उठाने वाले रूद्र, महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, भिलपती, भिलेश्वर, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार – ये सभी नाम भगवान शिव के हैं।
हिमालय के कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले भगवान शिव हमेशा ध्यान में रहते हैं और पूरे जगत का कल्याण करते हैं।
इन्हीं महादेव की पूजा-अर्चना का महान दिन है महाशिवरात्रि।
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आने वाली यह रात्रि महाशिवरात्रि कहलाती है। इस दिन महादेव की पूजा-अर्चना और उपवास करने से वे बहुत प्रसन्न होते हैं। यह दिन भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और वे अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं।
इस दिन की प्रमुख विशेषताएं हैं:
- इस दिन भगवान शिव का प्राकट्य हुआ था।
- इस दिन भगवान शिव का देवी पार्वती से विवाह हुआ था।
महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद महाराज युधिष्ठिर अपने चारों भाइयों और पत्नी द्रौपदी के साथ रणभूमि में पितामह भीष्म से मिलने जाते हैं। उस समय भीष्म पितामह उन्हें उपदेश देते हुए राजा चित्रभानु की कथा सुनाते हैं।
एक बार राजा चित्रभानु अपनी पत्नी और परिवार के साथ महाशिवरात्रि के व्रत का पालन कर रहे थे। उस समय ऋषि अष्टावक्र उनसे मिलने आते हैं। उन्होंने देखा कि राजा शिवरात्रि व्रत का पालन कर रहे थे। तब ऋषि अष्टावक्र उनसे पूछते हैं – आप ये शिवरात्रि का व्रत क्यों पालन कर रहे हैं?
राजा चित्रभानु उत्तर देते हुए कहते हैं – हे ऋषिवर, पूर्व जन्म में मैं वाराणसी नगर में रहने वाला एक शिकारी था।
निर्दोष पशु-पक्षियों का शिकार करना और उन्हें मारकर बेचना ही मेरा व्यवसाय था। एक दिन शिकार की खोज में मैं बहुत घने जंगल में चला गया। और शिकार करते हुए मुझे काफी समय हो गया था, बहुत रात्रि भी हो चुकी थी। रात्रि के कारण मैं वापस घर लौट नहीं पाया और एक पेड़ पर चढ़ गया।
वह बेल का वृक्ष था। मेरे पास एक मरा हुआ हिरण भी था जिसका मैंने शिकार किया था। मैंने उसे उस वृक्ष से बांध दिया। भूख और प्यास से मैं व्याकुल हो रहा था। उस सम्पूर्ण रात्रि में जगता रहा, घर पर मेरे बच्चे, पत्नी भी भूके होंगे ये सोच सोच कर मैं पूरी रात रोता रहा। यर सब सोचता सोचता ही में उस वृक्ष के पत्ते तोड़ कर नीचे गिरता रहा।
अगले दिन जैसे ही सुबह हुई मैं वापस अपने घर चला गया। उस मारे हुए हिरन को बेचकर मैंने धन लिया और अपने परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था की। बिना भोजन किए पूरे दिन और पूरी रात बिताने के बाद जब मैं घर गया तो वहाँ एक अतिथि आए जिन्होंने मुझसे भोजन की मांग की। मैंने उन्हें पेट भर भोजन कराया और अंत में स्वयं भोजन किया।
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